गुम हूँ ...
भीड़ के रिवाजों में, भीड़ के समाजों में,रिश्तों की नुमाइश में, मकानों की पैमाइश में ..
कागजों की मिलिकियत में, अहम् की तरबियत में, मुसलसल भाग रहा हूँ , सबसे बेहतर बनने की दौड़ में ....
गुम हूँ...
कीमती घड़ियों से वक़्त नहीं रुकता , बड़े मकानों से हवा क़ैद नहीं होती...
गाड़ियाँ वक़्त की रफ़्तार को हरा नहीं सकती , पैसे की महक मौत को ठहरा नहीं सकती
गुम हूँ .....
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