Ajeeb aadmi thaa woh ......


अजीब आदमी था मैं  भी .....कौन था ...शायद आईने में  भी वोह नहीं ....
अजीब आदमी था वोह ......
मोहब्बतों का गीत था ....बगावतों का राग था .....कभी वोह सिर्फ फूल था ...कभी वोह पूरा बाग़ था .....
वोह मुस्लिफों से कहता था,दिन बदल भी सकते हैं ....वोह जालिमों से कहता था, तख़्त ओ ताज पलट भी सकते हैं ....
वोह बंदिशों  से कहता था ..में तुमको  तोड़ सकता हूँ ...सहूलतों से कहता था , मैं तुमको छोड़ सकता हूँ ...
हवाओं से वोह कहता था , मैं तुमको मोड़ सकता हूँ .....वोह ख्वाब से यह कहता था ...के तुझको सच करूँगा में ...
वोह आरज़ू से कहता था ..के तेरा हमसफ़र हम मैं ...तेरे साथ चलूँगा ...तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंजिलें ....कभी नहीं थकुंगा मैं ...
वोह ज़िन्दगी से कहता था , तुझको भी सजाऊंगा में ...तुम मुझसे चाँद मांगेगी ..मैं चाँद ले के आऊंगा .....
वोह आदमी से कहता था ....आदमी का एहतराम कर ....उजाड़ रही है यह ज़मीन ..कुछ इसका भी ख्याल कर ...
वोह ग़मों से कहता था ...मैं तुम से जीत जाऊँगा ...तुमको तो भुला ही देगा यह ज़माना ....मेरी अलग है  दास्ताँ ....
वोह आखें जिनमें ख्वाब थे ...दिल जो पुरजोर धड़कता था ....वोह बाजू जिनमें थी सकत ....वोह होंठ जिनमे लफ्ज़ थे .....
आऊँगा याद के जब में बीत जाऊँगा ....के जब में बीत जाऊँगा ........

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