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मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह.. दोस्ती हर दिन की मेहनत है चलो यूँ ही सही.इंसान इस दुनिया की रवायतों में खिशी ढूंढें .यूँ ही सही

हवा से कहे दो अपनी औकात मै रहे, हम पैरो से नही हौसलो से उडा करते है...

यह हम में तुम में जो फासले हैं...तो आओ इसका सबब भी ढूंढें ...किसी के हाथों में तुम भी खेले ...हुए किसी का शिकार हम भी ....

रियावतों के सताए तुम भी ..पुरानेपन के शिकार हम भी ...ना तुम ही अपनी हदों से निकले ...ना खुल के कर पाए प्यार हम भी...

मोहब्बतों की नज़ाकतों का लिहाज़ रखा ना पास तुमने ...मिली हैं खुशियाँ ना इतनी तुमसे ...किया है जितना उदास तुमने ....

'वक़्त, दोस्त और रिश्ते; ये वो चीजें हैं जो हमें मुफ्त मिलती हैं! मगर इनकी कीमत का तब पता चलता है, जब ये कहीं खो जाती हैं!

कहा भी था उसने ....ख्वाब से ज्यादा ..गिरेबान देखो अपना ....सुना होता तो अच्छे रकीब ही होते उसके ....

ऊसूल ए इश्क यह कहता है के माजी है वोह ..सिर्फ यादों पे उसकी है इख्तियार तुम्हारा...सोच तो सकते हो ...पास हो नहीं सकते उसके ....

अब तो इस ग़लतफहमी से निकलो मसरूफ...सिर्फ एक तुम ही नहीं आशना उसके .....

जज्बाती गुफ्तगू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता ...रफू पे रफू ..हो तो जाता है ...अच्छा नहीं लगता ..

इसलिए तो हम अक्सर रतजगे मनाते हैं...जिनको नींद आती है ...उनको ख्वाब आते है .....the reason why I don't sleep ...those who sleep..dream..

अब वो मंजर ना वो चेहरे ही नजर आते हैं मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं

Those of who feel time never return ...forget clocks are round

एक तू ही नहीं.. ज़माने में, मेरा दिल दुखाने वाला, यहाँ अपनों में मेरे बाज़ी सी लगी है !!

ishq mein jeete ke aane ke liye kaafi hun...main nihathha hee zamaane ke liye kaafi hun ....
     
मैं जिसे दिल से प्यार करता हूँ ...चाहता हूँ उसे खबर न लगे ...वोह मेरा दोस्त भी है ..दुश्मन भी..बद्दुआ दूँ उसे मगर ना लगे ...
मुददतों खुद की कुछ खबर ना लगे .कोई अच्छा भी इस कद्र ना लगे ...बस तुझे इस नज़र से हमेशा देखा है ...जिस नज़र से तुझे नज़र न लगे ...
तबस्सुम इतर जैसा है ...हंसी बरसात जैसी है ...तुम्हारे याद से दिल में उजाला होने लगता है ..तुम्हे जब याद करता हूँ तो रातें भीग जाती है ...
तुम्हारे पास आता हूँ ..तो साँसे भीग जाती है ..मोहब्बत इतनी मिलती है ..के आँखें भीग जाती है ...वोह जब भी बात करती है ..तो लम्हे भीग जाते हैं
तन्हापसंद हैं आप ? भटका हुआ बेचैन सा दरिया हूँ ...जब समंदर में उतर जाऊँगा,मर जाऊँगा....
उर्दू बहुत अच्छी है आपकी ...जी ..माशूक है मेरी ..देहली से हूँ ...ग़ालिब की रूह से तारूफ हैं..रोज़ा तो नहीं रखता ...पर इफ्तारी तो समझता हूँ

ग़ज़लें क्यूँ ? .ग़ज़लें गुफ्तगू होती हैं,माशूक और आशना की,बस बातें हैं,सुनने में अच्छी लगती है,जो कर न सको उसके बारे में सुन लेना चाहिए..

मोहतरमा ने हिम्मत बाँध के कह ही दिया ... बाल जल्दी सफ़ेद हो गए आपके ...जी ...ज़िन्दगी के तजुर्बे जल्दी हो गए ...इसलिए शायद दिख रहे हैं

ये वो महफिल है, जिसमें शोर करने की रवायत है, दबे लब पर हमारी वाह-वाही कौन पढ़ता है

यहाँ ख़ामोश नज़रों की गवाही कौन पढ़ता है, मेरी आँखों में तेरी बेग़ुनाही कौन पढ़ता है.....

अब वो मंजर ना वो चेहरे ही नजर आते हैं मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं

जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं

मैं कभी तुझसे बेखबर ना हुआ ....कोई आंसू इधर उधर ना हुआ ...यह अलग बात तू मेरा तलबगार नहीं ... मुझे कभी तुझसे इक्तालाफ ना हुआ ...

पहले अपनी ख्वाइशों को , आरजूओं को समेट .....जब यह हट जायेगें तब रास्ता बन जाएगा ....

राह से ना शिकायत ना हमसफ़र से ऐतराज़ जताया ...दीखते थे ख्वाब जिसमे वोह तोड़ दिया आइना हमने ...

ना रब की बेईतबारी, न रस्म ऐ मोहब्बत से ....अपने ख्वाबों से किया रंज का इज़हार हमने ,,,,

कशमकश में कट गयी सारी जिंदगानी ; तन्हाई ने जीने न दिया और जुस्तजू ने मरने ..........!

''कुछ ऐसा धूप-छावं सा हमारा रिश्ता था...... न पूरा दिन चढ़ा कभी, न शाम ही हुई''

फ़ासले घटा देते है दिल से नफरतों को.. वो जो दूर हुए कुछ मुहब्बत सी होनी लगी

आज इन आखों को गुलाब जल से धो लेना ..बहुत उम्र भर छुपाया है इन्होंने..कहने दो इन्हें ..इनका नमक भी कुछ कम हो जाए

आंसू भी अजीब चीज़ हैं ...अपने हो ..तो कुछ बोझ हल्का कर देते हैं ...माशूक के हो तो नासूर बन जाते हैं ...

इस मौत के कुओं की सी दौड़ मैं,जीतने का तलबगार नहीं मैं.,तुम मेरे चेहरे से पढ़ लेना , जज्बातों का अखबार...कह के समझाने वाला अच्छा नहीं मैं .
तेरे पहलू से जो उठूंगा तो मुश्किल ये है, सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊंगा
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊंगा, मैं तो दरिया हूं, समन्दर में उतर जाऊंगा,

jab ghazal faraz kee padtha hai padosi mera ....kuch nami see is deewar mein aa jati hai ....

ना रंजिशे हारती है ...ना अपनी ही जिद थकती है ..मुस्तकिल मिजाजी की है कुछ लड़कपन से आदत मुझे..... रोज़ नींद आती हैं....रोज़ ख्वाब आते हैं

I love being alone, I hate being lonely..."
सभी ये चाहते हैं, रोज़ नया हो जाऊं... मुझे इंसान न कर, मुझको कैलेंडर कर दे...!

कांच के ख्वाब थे.खो गए पत्थरों के नगर में कहींसोच ले मिला ही नहीं,तू मुझे ढूंढना छोड़ दे,.खुदबखुद नींद आ जायेगी ...बस मुझे बेवफा सोच ले ....

तेरी अश्कों के नमक का क़तरा ..ना जाने क्या क्या जला दे ... तेरी आखों से बादल गिर ना जाए कहीं ....रातों को जागना छोड़ दे ........

भूले हैं मुद्दतों में उन्हें रफ्ता रफ्ता हम किश्तों में खुदखुशी का मज़ा हम से सीखिए ....

बहसें फिजूल थीं यह खुला हाल देर में अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में





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