कभी कभी यूँ भी होता है ...अपने अन्दर का तूफ़ान नहीं सोता है ....
यह कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम ....बहुत जी चाहता है फिर से बो दूँ अपने आखें ..
पहले जेब में चांदी नहीं थी ..अब सर पे चाँदी ही बिखरी है ......
ठीक कहती थी तुम उन दिनों ....शायरी नहीं डिग्री काम आएगी ...याद है वोह बारिश में चलना ..था तब आसमान पैरो तले और ख्वाब आखों में ...पर पता नहीं था
बहुत ख्वाब रह गए ...तभी आखें गल गयीं .....शायद …
यह कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम ....तुम्हारें गीलें बालों की छीटों की इंतज़ार में नज़रें सूख गईं ....
उम्र तुम पर भी हसीं लगती है ....अब जो थोड़ी सी भर गयी हो तुम ....यह वज़न तुम पे अच्छा लगता है ...
तुम्हारी मुस्कराहट अब भी मेरे नींद पे छीटों का काम करती हैं .....
ठीक से सोया करो ... खाया करो ......उम्र भर नहीं रहूँगा यह बताने को....
उठो दफ्तर जाने का टाइम हो गया.…
दिल ढूँढता है फिर वही …
यह कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम ....बहुत जी चाहता है फिर से बो दूँ अपने आखें ..
पहले जेब में चांदी नहीं थी ..अब सर पे चाँदी ही बिखरी है ......
ठीक कहती थी तुम उन दिनों ....शायरी नहीं डिग्री काम आएगी ...याद है वोह बारिश में चलना ..था तब आसमान पैरो तले और ख्वाब आखों में ...पर पता नहीं था
बहुत ख्वाब रह गए ...तभी आखें गल गयीं .....शायद …
यह कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम ....तुम्हारें गीलें बालों की छीटों की इंतज़ार में नज़रें सूख गईं ....
उम्र तुम पर भी हसीं लगती है ....अब जो थोड़ी सी भर गयी हो तुम ....यह वज़न तुम पे अच्छा लगता है ...
तुम्हारी मुस्कराहट अब भी मेरे नींद पे छीटों का काम करती हैं .....
ठीक से सोया करो ... खाया करो ......उम्र भर नहीं रहूँगा यह बताने को....
उठो दफ्तर जाने का टाइम हो गया.…
दिल ढूँढता है फिर वही …
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