Tweets - Sunday April 20th, 2014

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं,


यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं


छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं


भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं


हर लम्हा है नया ...रोज़ की नयी जंग से क्या डरना ....ज़िन्दगी का मज़ा रोज़ की कशमकश में है .....जो हो मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना


आखें दान करने के फार्म पर बड़े शौक से मैंने लिखा ...जिस देना ,उसे बता देना कुछ ख़ास है ...इंतज़ार में उम्र भर रही है पर झुकी कभी नहीं


पुरानी बातें भूल जाना चाहता है ...वोह अपना ग़म छुपाना चाहता है ..."मसरूफ" उसकी ख़ामोशी कह रही है ...बिछड़ने का बहाना चाहता है


लू भी चलती थी तो वोह बहार कहती थी,हवा को धूप, दिन को शाम कहती थी,उनका अंजाम तुझे शायद याद नहीं है शायद, और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे


जो भी मिलता है उसे अपना समझ लेता हूँ मैं …एक बीमारी मुझे यह खानदानी और है ……


एक कहानी खतम कर के वोह बहुत है मुतमईन , भूल बैठा है वोह के आगे एक कहानी और है


खुशख दरियाओं में हलकी सी रवानी और है......... रेत के नीचे अभी थोड़ा सा पानी और है,


इलज़ाम..... तोहमतें ....ख्वाब ..... ज़हर..... ज़लालत , .... क्या क्या है ....... मैं आ गया हूँ। बता इंतज़ाम क्या क्या है


हमारे साथ,बड़ा हादसा सा हो गया,,, हम रह गए,हमारा जमाना गुजर गया


ये जख्म है उन दिनों की यादें , जब आप से दोस्ती बड़ी थी ।


हमने तुम्हारे बाद न रखी किसी से आस,,, एक तजुर्बा बहुत था ,बड़े काम आया


चाहता तो यह था के हर शाम उसके साथ गुलज़ार करूँ, अब अपनी रूह के छालों का कुछ इलाज करूँ


पर मेरी माशूक़ को एक धुन सवार रहती थी , यह मुस्कराता बहुत है, चलो इसे ज़लील करूँ,


पर मेरी माशूक़ को एक धुन सवार रहती थी , यह मुस्कराता बहुत है, चलो इसे ज़लील करूँ,


इतना आसान हूँ कि हर किसी को समझ आ जाता हूँ ...शायद तुमने ही पन्ने छोड़ छोड़ के पढा मुझे ....


अपने हर लफ़्ज़ में कहर रखते हैं हम, रहे ख़ामोश तो भी असर रखते है हम...


हम ने मोहब्बत के नशे में आ कर उसे खुदा बना डाला; होश तब आया जब उस ने कहा कि खुदा किसी एक का नहीं होता.........


दुश्मनो ने तो हमेशा दुश्मनी की है, दोस्तों ने भी क्या कमी की है। उम्मीद ज़िन्दगी की थी जिससे, उसने जाते जाते क्या दिलारेज़ बातें की है।


Tere mere raastay yun takraye aksar, tere hathon se nikalkar mera naseeb guzra.


उनका न रहना भी कहाँ हैं गम की वजह... ज़िंदगी यूं ही कुछ चुप, कुछ गुमसुम -सी रहती हैं ...!!


Khuli kitaab ke safhe ulat'tey rehte hain ! hawa chale na chale, din palat'tey rehte hain !!


दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से, मगर अकेले में अपना भी एहतराम करो. ख़ुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी, वो अपना काम करेगा तुम अपना काम करो


हज़ारों ऐब ढूँढ़ते है हम दूसरों में इस तरह, अपने किरदारों में हम लोग,फरिश्तें हो जैसे....!!!!


ये जो मेरे क़ब्र पे रोते है......अभी उठ जाऊँ ..तो जीने ना दे.....


चाँद से गिर के मर गया है वो लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है


उसी का शहर वोही मुद्दई वोही मुंसिफ मुझे यकीन था मेरा कसूर निकलेगा,यकीन ना आये तो कुछ पूछ कर देखो ,जो हॅस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकेलगा


Yeh mat soch tujhse mulakaat achanak hui hai.. barson khayalaat mein taraasha tha tujhe.


Mere hi hathon pe likhi hai taqdeer meri // aur meri hi taqdeer par mera bus nahi chalta


Ironically, the person you'd take a bullet for sometimes ends up being the one behind the gun.


यूं बेहिसाब आंसू आते नहीं.. लग ज़रूर कोई बात, दिल को रही है..!! खामोशी में भी, शोर सा कुछ.. नींद भी आज, करवट बदल रही है..!!!


कोई तो बात हैं तेरे दिल मे जो इतनी गहरी हैं कि-- तेरी हँसी तेरी आँखों तक नहीं पहुँचती --


सबब और न बन सकेंगे जीने के अब तेरी यादो के सहारे , अब के इस दिल ने है ठानी या तू नही या फिर मैं नही .......


यारो हूँ मैं अगर आज कुछ तो बदौलत उसकी हूँ , मेरे दुश्मन का बुरा हो, मुझे मंजूर नहीं


Koshiish bhi kar..Umiid bhi rakh..Raasta bhi chun \\ Phir uske baad thoDaa muqaddar talaash kar....


यूँ नहीं के मैं नहीं समझता तेरी बेरुखी की वजह , …तेरी अना.… तेरी ज़िद्द , मेरी सादा मोहब्बत पे भारी है


केह दिया है अपने दोस्तों अज़ीज़ों से मैंने , दुश्मन होने की अब मेरी बारी है


तुम आँख घूँट के पी जाओ ज़िन्दगी के सारे गम ........के एक घूँट में शायद यह बदमज़ा ना लगे ...........


If She cant handle my worst, she doesn't deserve my best either ......


कुछ इस अदा से मेरे साथ बेवफाई कर , के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा ना लगे .....


kaun rota hai kisi aur ki khatir, aye dost, sab ko apni hi kisi baat pe rona aaya"


'They told me that to make her fall in love I had to make her laugh but every time she laughed I was the one falling in love....


नींद इस सोच से टूटती है अक्सर .... किस तरह कटती हैं रातें उस की.…।


फासले और बढ़ा दो ,क़े मैं ज़िंदा हूँ अभी,ज़िल्लत कुछ और बढ़ा दो, के मैं ज़िंदा हम अभी ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालों.....


ग़ज़ल है जो दिल की सुन लेती है, कह भी देती है, ……… वरना इस मुल्क में ख़ामोशी की सुनता कौन है,


सब आँख का धोका है, रवानी तो नहीं है, …… दरिया में बस रेत है , पानी तो नहीं है, .......


तेरी-मेरी राहें तो कभी एक थी ही नहीं,,, फिर शिकवा कैसा,और शिकायत कैसी..


तमाम उम्र चलता रहा , पर घऱ नहीं आया,……एक बार जो चल पड़ा घर से, …करार नहीं आया


abb ke dushman ko bhi duaa di jaaye,,, unn ko hum si koi sazaa naa di jaaye....


Kaun sa zakhm kis nay bakhsha hai/ iss ka rakkhay kahan hisaab k


Aaj vo bhi bichhad gaya hum se/ chaliye yeh qissaa bhi tamaam hua.


Main bujh gaya to hamesha ko bujh hi jaoonga .....Koi chiraag nahi hu jo phir se tum jala logi ..


कहाँ तक आँख रोएगी ........कहाँ तक किसका ग़म होगा ....... मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई........ रोज़ कम होगा


हम ने मोहब्बत के नशे में आ कर उसे खुदा बना डाला; होश तब आया जब उस ने कहा कि खुदा किसी एक का नहीं होता.......


क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता


प्यासे रहे जाते हैं जमाने के सवालात किसके लिए ज़िन्दा हूँ, बता भी नहीं सकता


तू छोड़ रहा है, तो ख़ता इसमें तेरी क्या हर शख़्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता,


Bade Ajeeb se iss Duniya ke Mele hain... Dikhti to Bheed hai par chalte sab Akele hain


Ye Shaan O shauqat e alam, sada kisi ki nahi, Chirag Sabke bujhenge, Hawa kisi ki nahi.":).        


हमारा ज़िक्र जब आये तो यूँ अनजान बन जाना , के जैसे नाम सुन कर भी.… हमें जाना नहीं तुमने


कभी रस्ते में मिल जाओ, तो कतरा के गुज़र जाना, हमें इस तरह तकना जैसे पहचाना नहीं तुमने


तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे, ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे, जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी, कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे


बहुत मसरूफ हो शायद ,जो हम को भूल बैठे हो , न ये पूछा कहाँ पे हो ,न यह जाना के कैसे हो


जहां जहां कोई ठोकर है मेरी किस्मत में , वहीं वहीं लिए फिरती है जिंदगी मुझ को


तन्हाई की ये कौन सी मंजिल है रफीकों ता-हद्द-इ-नज़र एक बयाबान सा क्यूं है


क्या कोई नै बात नज़र आती है हम में आईना हमें देख के हैरान सा क्यूं है


या तुम अपने दिल की मानो, या फिर दुनिया वालों की , मश्वरा उसका अच्छा है। ....वक़्त मिला तो सोचेंगे


हमने उसको लिखा था , कुछ मिलने की तदबीर करो, उसने लिख कर भेजा है, वक़्त मिला तो सोचेंगे, ....


सारा शहर शनासाई का दावेदार तो है लेकिन , कौन हमारा अपना है वक़्त मिला तो सोचेंगे


तू क्यूँ अच्छा लगता है, वक़्त मिला तो सोचेंगे , ……तुझमे क्या क्या दीखता है, वक़्त मिला तो सोचेंगे


पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर , कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है ....


कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है , ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है


ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते


जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते


"Ek sannaata dabey pao'n gaya ho jaise, Dil sey ik khauf-sa guzra hai bichhad jane ka


बड़ी खामोशी से , भेजा था गुलाब उसको.....पर खुशबू ने शहर भर में तमाशा कर दिया ।


रिन्दों में फिरकापरस्ती यूँ नहीं होती, नशा हर घूँट में सबको बराबर होता है,


रफ़्तार कुछ ज़िन्दगी की यूँ बनाये रख , कि दुश्मन भले आगे निकल जाए.....पर दोस्त कोई पीछे न छूटे


यह भी मुमकिन है इन्ही में कहीं हम लेटे हो ,…। तुम रुक जाना अगर रस्ते में मज़ारें आ जाएँ


हाल पूछती नहीं दुनिया जिंदा लोगों का, चले आते हैं ज़नाज़े पे बारात की तरह


डाकुआँ दा जे साथ न दिंदा पिंड दा पहरेदार, अज पैरें ज़ंजीर ना हुंद जित ना हुंदी हार, पग्गन अपने गल विच पा लो तुरो पेट दे भार,


इक गलती हुई मुझसे जिस धागे से सीता था उस धागे के आखिर में, मैं गिरहा लगाना भूल गया !!


वक्त सिखा देता है इंसान को फलसफा जिंदगी का.. फिर तो नसीब क्या.. लकीर क्या... और तकदीर क्या


किश्तों में टूटोगे...तो किश्तों में बिखर भी जाओगे...मेरे यार तुम एक दिन...!"


उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो , खर्च करने से पहले कमाया करो,ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे.... बारिशों में पतंगें उड़ाया करो


अब लोग गलत नहीं होते,,, अलग .... होते हैं


मेरे ग़म अगर तुम्हे मिलते। आप अपनी होश खो दिए होते। यह तो मैं हूँ के मुस्कराता हूँ। …आप होते तो रो लिए होते।


बात किरदार में होती है,वरना,,, कद में साया भी,इंसान से बड़ा होता है...


Opinions are like orgasms. Mine’s more important and I don't care if you have one


The true mark of maturity is when somebody hurts you and you try to understand their situation instead of trying to hurt them back.


shaam hote hi chiraghon ko bujha deta hoon...dil hi kaafi hai teri yaad mein jalne ke liye...


फ़लक तक पहुँच पाऊँगी या नही मैं, ये कह कर हताश ना कर, मेरे आगाज़ से पहले ऐ ज़माने, तू मेरे अंज़ाम की तलाश ना कर...!"


अकेले ही सही..कॉफी अब भी आधी ही पीता हूं.....


Breakups are hard to deal with because the body and mind goes through withdrawal -- Like drug addiction, we become addicted to love.


झटक के हाथ निकल गये ज़िन्दगी का...कुछ पल जो ज़िन्दगी के सबसे करीब रहे...!"


गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ... वाक़िफ़ सभी थे गो कोई पहचानता न था


जागा हुआ ज़मीर वो आईना है ‘क़तील’// सोने से पहले रोज़, जिसे देखता हूं मैं


वो बचपन कितना सुहाना था सर ए आम रोया करते थे अब एक आँसू भी गिरे तो लोग हजारों सवाल करते हैं —


लिहाज़-ए-इश्क न होता तो तुझसे रंजिशें होती... शिकायत है तो बस इतनी कि तू समझा नहीं हमको..!


नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये , अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये


नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर, दरिया हुआ है गुम तो .....समुंदर तलाश कर


Lesson of Life: Unexpressed creativity will not go away. It will express itself in anger shyness and withdrawal symptoms. Express yourself


नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से.. ख्वाब आ आ कर मेरी छत पर टहलते क्यों है...


Unchi Imaaraton Se Makaan Mera Ghir Gya Kuch Log Mere Hisse Ka Suraj Bhi Kha Gye


हम पर दुःख का पर्वत टूटा तब हमने दो चार कहे,, उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे..!!"


बताऊँ तुम्हे एक निशानी उदास लोगों की, कभी गौर करना, ये हँसते बहुत है


बात कम कीजे,ज़ेहानत को छुपाए रहिए,,, अजनबी शहर है ये,दोस्ती बनाए रहिए


मुझसे भी उसका है ऐसा ही सलूक। यादें जैसी मुझसे किया करती हैं। । बातें करती हैं कुछ और बयाँ। बात कुछ और हुआ करती है


खुदा करे जहाँ को मेरी याद भूल जाए। । खुदा करे के तुम कभी ऐसा ना कर सको।


तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई... मेरा शिकवा सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई...


अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं ...


हम दुश्मन को भी पाकीज़ा सज़ा देते हैं 'फ़राज़'...... आवाज़ नहीं उठाते...नज़रों से गिरा देते हैं...


उसने देखा ही नहीं वरना यह आखें। …हाल इस दिल का कहा करती हैं। बारिश होते ही किसी शख्स की याद..... कूचा इ जान में सदा करती


अब कोई बात भी मेरी माना के होश की नहीं। आप को भूल जाऊं मैं.… ऐसी तो बेखुदी नहीं। ...


जब में डूबा तो समंदर को भी हैरत हुयी मुझ पर,,, अजीब शख्स है किसी को पुकारता ही नहीं ......


फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं।। मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं।


वो ही रंजिशें, वो ही ख़्वाहिशें, न ही दरद-ए-दिल में कमी हुई अजीब सी है मेरी ज़िन्दगी , न गुज़र सकी न ख़त्म हुई 


तमाम उम्र अज़ाबों का सिलसिला तो रहा,ये कम नहीं हमें जीने का हौसला तो रहा,मैं तेरी ज़ात में गुम हो सका बहुत क़रीब थे हम फिर भी फ़ासला तो रहा


जिनकी खातिर तोड़ दी सारी सरहदें हमने आज उसीने कह दिया ज़रा हद में रहा करो


अमीरे—शहर का रिश्ते में कोई कुछ नहीं लगता , ग़रीबी चाँद को भी अपना मामा मान लेती है .


दिन खाली खाली बर्तन है, और रात है जैसे अंधा कुंवा, इन सूनी अंधेरी आँखों में, आंसू की जगह आता है धुंआ, जीने की वजह तो कोई नहीं.........


रमक हो इनमे कहीं ज़िंदगी को कुछ बाकी, मेरी लाश को खंजर चुबाके देखा है


Harf-e-tasalli to ik takalluf hai sahib.......... Jis ka dard usi ka dard, baqi sub tamasha...........!!!!!!!


हैं सब के दुःख एक से... मगर होसलें हैं जुदा-जुदा... कोई टूट कर बिखर गया... कोई मुस्कुरा कर चल दिया..."


कहाँ तक साथ दे तन्हाई आखिर यह पागल भी तो छोड़ जायेगी एक दिन .... मेरी ग़ज़लों की बातें तुझे यादों से भर जाएंगी एक दिन


Confidence is like orgasm. With practice, you learn to fake it


खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ, लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ. मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा. फिर भी, कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ


मैंने यह सोच कर तस्बी ही तोड़ दी मसरूफ......इबादत है ...मोहब्बत है ....कोई तिजारत नहीं जो गिन गिन के करूँ


ख्वाइशों से भरा पड़ा है घर इस कदर,,, रिश्ते , ज़रा सी जगह को तरसते हैं


किश्तों में ख़ुदकुशी किये जा रहे हम,,, मुद्दतों से यूँ ही जिए जा रहे हैं हम...


ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ वक़्त लगता नहीं ,वक़्त बदलने में ...


समय के एक तमाचे की देर है प्यारे, मेरी फकीरी क्या, तेरी बादशाही क्या?


एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया, वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला



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